Congress के कुछ पुराने नेताओं को पार्टी में वापस लाने के बाद प्रेस कांफ्रेंस करते अरविंदर सिंह लवली।
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कांग्रेस के पूर्व नेताओं-कार्यकर्ताओं को अब अपनी ‘गलती’ का एहसास हो रहा है। उन्हें लग रहा है कि यदि दिल्ली का विकास करना है, तो उन्हें उसी पार्टी का साथ देना चाहिए जिसके साथ वे वर्षों से जुड़े रहे थे। इस अनुभव के साथ पार्टी के वे पुराने नेता-कार्यकर्ता पार्टी में वापस आ रहे हैं, जिन्होंने दिल्ली में कांग्रेस के कमजोर होने के बाद भाजपा या आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया था। पार्टी के पुराने नेताओं-कार्यकर्ताओं की कांग्रेस में वापसी उस अरविंदर सिंह लवली के कारण हो रही है, जो कभी शीला दीक्षित का बेहद खास हुआ करते थे। बुधवार को भी उन्होंने नई दिल्ली और दिल्ली कैंट इलाके के सैकड़ों पुराने कार्यकर्ताओं की पार्टी में वापसी कराई। इसमें कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके संदीप सिंह भी शामिल हैं, तो भाजपा की जिला इकाई की पदाधिकारी भी।
हर क्षेत्र, हर वर्ग के लोग
यह काम केवल पूर्वी दिल्ली या दिल्ली कैंट इलाके में ही नहीं हो रहा है। दिल्ली के अलग-अलग इलाकों से नेताओं-कार्यकर्ताओं को वापस लाने की कोशिश हो रही है। इसमें पंजाबी, बनिया, दलित और मुस्लिम नेता-कार्यकर्ता सभी शामिल हैं। ये वर्ग कांग्रेस के परंपरागत वोटर हुआ करते थे। आम आदमी पार्टी के मजबूत होने के बाद ये वोटर उसकी ओर चले गए, जिससे कांग्रेस कमजोर होती चली गई। लेकिन अरविंदर सिंह लवली पार्टी नेताओं के बीच एक नई उम्मीद बनकर उभरे हैं और उनके कारण पार्टी को मजबूती मिलती दिख रही है।
चुनाव नहीं, लेकिन इसके बाद भी वापसी
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मीडिया इंचार्ज जितेंद्र कोचर ने अमर उजाला से कहा कि चुनाव के समय नेताओं-कार्यकर्ताओं का किसी एक पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टी में जाना सामान्य बात है। लेकिन यहां खास बात है कि चुनाव करीब न होने के बाद भी उनके पुराने नेता-कार्यकर्ता वापस आ रहे हैं। चूंकि, कांग्रेस इस समय दिल्ली में सत्ता में नहीं है, इन लौट रहे कार्यकर्ताओं को यहां कुछ मिलने की उम्मीद भी नहीं है।
उनके लिए संघर्ष की एक जमीन खुली है, जिसके एक तरफ दिल्ली की सत्ताधारी पार्टी आप और दूसरी तरफ केंद्र की सत्ताधारी पार्टी भाजपा है। इसके बाद भी पार्टी में लोगों की वापसी हो रही है, तो पार्टी के लिए यह शुभ संकेत है। कांग्रेस के नेताओं को उम्मीद है कि शीला दीक्षित का यह पूर्व कमांडर दिल्ली में पार्टी की वापसी कराने में सफल रहेगा। दिल्ली कांग्रेस के जिस कार्यालय में मुश्किल से कोई दिखाई देता था, यदि उसके सामने वाहनों का भारी काफिला दिखाई देता है तो उसके पीछे लोगों की यह उम्मीद ही है।
इस कारण भी कांग्रेस को मिल रहा बल
अरविंदर सिंह लवली इसके पहले भी प्रदेश की कमान संभाल चुके हैं। अपने पिछले कार्यकाल में वे पार्टी के लिए कोई बड़ी सफलता हासिल नहीं कर सके थे। इसके बाद भी यदि लोगों में उन्हें लेकर इतनी उम्मीद है तो इसके कुछ कारण समझे जा सकते हैं।
दरअसल, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने उनमें उत्साह भर दिया है। उन्हें लगता है कि जिस तरह पूरे देश में कांग्रेस वापस करती दिखाई पड़ रही है, आने वाले समय में दिल्ली में भी पार्टी की वापसी हो सकती है। इस समय हो रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को कई राज्यों में अपनी वापसी होने की उम्मीद है। यदि पार्टी के लिए नतीजे सकारात्मक रहे तो दिल्ली की राजनीति पर भी इसका असर पड़ सकता है।
दूसरा बड़ा कारण है कि पूरे देश में कांग्रेस का परंपरागत मुसलमान मतदाता उसके पास वापस आ रहा है। दिल्ली में तो वह नगर निगम चुनाव के समय भी कांग्रेस के साथ मजबूती से खड़ा दिखाई पड़ा। ऐसे में कांग्रेस को लगता है कि दिल्ली में भी लोकसभा चुनाव में मुसलमान मतदाता उसके साथ आएगा। पिछले लोकसभा चुनाव में भी मुसलमान मतदाता कांग्रेस के साथ खड़ा रहा था, जिसके कारण कांग्रेस ने हर सीट पर मजबूत लड़ाई लड़ी और हर सीट पर दूसरे नंबर पर आई।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के कारण दलित और अन्य पिछड़े समुदाय के मतदाता पार्टी से जुड़ रहे हैं। यह ट्रेंड कर्नाटक से शुरू होने के बाद दूसरे राज्यों में भी दिखाई पड़ रहा है। इस समय दिल्ली में कांग्रेस में वापसी करने वाले नेताओं-कार्यकर्ताओं में भी यह वर्ग सबसे ज्यादा है। खरगे भी इसका एक कारण हो सकते हैं। पार्टी को लगता है कि वह अपने पुराने परंपरागत वोट बैंक को साथ लाकर दिल्ली की राजनीति में मजबूत वापसी करने में सफल हो सकती है।